Fanoranjan. વડોદરાના સિનિયર સિટીઝન અને ચિંતક જનકભાઈ પરીખે કંગના રાણાવતને એક ખુલ્લો પત્ર લખ્યો છે. હાલના સંજોગોમાં જ્યારે કંગના રાણાવત વિવાદાસ્પદ નિવેદનો અનેક લોકોની લાગણીઓ દુભાવી રહ્યાં છે. ત્યારે એક વર્ગનું માનવું છે કે, કંગનાને કોઈએ જવાબદારીપૂર્વક નિવેદન આપવા માટે સમજાવવી જરૂરી છે.

 

જનકભાઈ પરીખનો અક્ષરસઃ પત્ર નીચે મુજબ છે.

माननीय कंगनाजी:

नमस्कार!

आपके १९४६ की आजादी और गांधी के बारे में विचार जाने। मैं अपने विचार रख रहा हूं:

मैं गांधी की हर बात से कतई सहमत नहीं, पर उनके जैसा आदमी और कोई देखा नहि। गांधी के कई पहलू थे। वो एक संत थे, जिसने अपनी अमीरी छोड़ कर, सबसे पिछड़े आदमी की तकलीफ महसूस करने, और साथ खड़े रहने, अपने शरीर पर एक ही वस्त्र रखा था। भारत तपस्वी और त्यागियो की भूमि है, और गांधी के इस त्याग से भारत का हर आम आदमी उनके साथ जुड़ गया। वह एक मिलट्री जनरल की तरह सोचते थे: दांडीकुच उनकी श्रेष्ठतम बैटल थी। एक एडवरटाइजिंग जीनियस की तरह उन्होंने १९४२में सिर्फ २ शब्दों का कॉल दिया: “क्विट इंडिया”, “अंग्रेज टलो”। और भी बहुत कुछ थे वे। तब जाकर उनके पास देश के आयरन मैन पटेल पहुंचे। टैगोर ने उनको महात्मा कहा। सुभाष बोझ ने गांधी को फादर ऑफ द नेशन कहा। नेहरू ने उनके बोल पर अपनी जिंदगी के करीब ९ साल जेलोंमें गुजारे। कहते हैं के गांधी के पास मुर्दे में से मानव बनाने का तालिस्मान था।

१८५७ से १९४६ तक, लक्ष्मीबाई से सुभाष बोझ तक लाखों लोगों के संघर्ष ने ऐसी परिस्थिति का निर्माण किया था कि ब्रिटिश हमें गवर्न करने में असफल हो गए। नहीं तो ब्रिटेन के चर्चीलियंस भारत नाम की दुज़नी गाय को नहीं छोड़ते।

यह लिखने का मकसद आप को हराना नहीं है, पर हो सके तो आपके दिल में जगह बनानी है, आपका दिल जीतना है। यह बात मैंने गांधी से सीखी है। व्यक्तिगत स्तर पर तो यह होता रहा है, गांधी ने इस आयाम को सामूहिक स्तर पर लाना सोचा। ईतने बम है दुनिया में की यह दुनिया कई बार खत्म हो सकती है। विनोबा जी ने कहा पश्चिम ने दिया एटम बम, पूरब ने आतम बम। तो एटम बम की जगह आतम बम से लड़ कर दुनिया को कैसे बचाया जाए, यह लड़ाई लड़ी गांधीने। इस प्रयासने ब्रिटेन के, दुनिया के लोगों का दिल जीता था। क्या यह भी कुछ कम है की भारत और ब्रिटेन के बीच कोई तनाव नहीं, और हमारे भारतीय मूल के लोग ब्रिटन में खुशी से जी रहे हैं! यह सोचनेकी भूल हम कदापी न करे की जो अब तक हुआ नहीं वह आगे कभी होगा नहीं।

कंगनाजी उस बंदे में दम था, कुछ आप में है, और कुछ कुछ तो हम सब में है। चलो दिल से दिल को जुड़े, और दुनिया को थोड़ी सी बेहतर बनाते चले।

जय हिंद, जय जगत, जय मानव।

जनक परीख

एक भारतीय

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